Bihar

सावन में मिथिला के लोग क्यों खाते हैं जमकर मीट और मछली? जानिए धार्मिक और सांस्कृतिक वजहें

सावन का महीना भगवान शिव की भक्ति और व्रत-उपवास के लिए जाना जाता है। देश के कई हिस्सों, खासकर बिहार की राजधानी पटना जैसे शहरों में इस महीने मीट और मछली पर प्रशासनिक पाबंदी भी देखने को मिलती है। लेकिन हैरान कर देने वाली बात यह है कि शिव के ससुराल मिथिला में सावन के महीने में लोग जमकर मीट और मछली खाते हैं — और इसे पूरी आस्था व परंपरा से जोड़ा गया है।

❖ सावन में भी क्यों खाया जाता है मछली-मांस?

पंडित भवनाथ झा, जो महावीर मंदिर पटना से जुड़े हैं, कहते हैं कि हिंदू धर्म में मीट और मछली खाने की मनाही केवल कार्तिक मास में होती है, न कि सावन में। वेद, पुराण और शास्त्रों में सावन में मांसाहार वर्जित होने का कोई उल्लेख नहीं है।

मिथिला क्षेत्र भौगोलिक रूप से नदियों, तालाबों और पोखरों से भरा हुआ है। सावन और भादो महीनों में यहां जल भराव और बाढ़ जैसी स्थितियां बनी रहती हैं, जिससे मछलियों की भरपूर उपलब्धता होती है। इसलिए इन महीनों में मछली की कीमत भी गिर जाती है — और यह गरीब-अमीर सभी के लिए आसान भोजन बन जाता है।

❖ वैष्णव परंपरा बनाम सनातन परंपरा?

पंडित भवनाथ झा का कहना है कि कुछ लोगों द्वारा वैष्णव परंपरा के नाम पर ईसाई मिशनरियों और आर्य समाज से जुड़े संगठनों ने सनातन धर्म में बिना प्रमाण के परंपराएं थोप दी हैं। मीट और मछली न खाने का नियम भी इसी का हिस्सा है, जिसे सावन में लागू कर दिया गया, जबकि इसका कोई शास्त्रीय आधार नहीं है।

❖ मधुश्रावणी पर्व और मछली का संबंध

मिथिला की महिलाओं के लिए सावन में मधुश्रावणी पर्व का बड़ा महत्व है। इस अवसर पर नई नवेली दुल्हनों के घर ससुराल पक्ष के लोग आते हैं और कई दिनों तक अतिथि सत्कार होता है। उन्हें हर दिन विशेष पकवानों के साथ मछली परोसी जाती है। इसलिए यह न केवल धार्मिक परंपरा बल्कि सामाजिक और पारिवारिक संस्कृति का हिस्सा भी है।

❖ प्रशासनिक पाबंदी: नई परंपरा?

पंडित भवनाथ झा यह सवाल उठाते हैं कि 20-25 साल पहले कहीं भी प्रशासन द्वारा मीट-मछली पर रोक की कोई खबर नहीं मिलती थी। यह नया चलन है जो प्रचार और दबाव से उभरा है, न कि परंपरा से।

मिथिला में मीट और मछली खाने की परंपरा सावन में भी जारी रहती है — न केवल धार्मिक मान्यताओं के आधार पर, बल्कि सांस्कृतिक, सामाजिक और भौगोलिक तर्कों के साथ। शास्त्रों में जब तक किसी चीज़ की मनाही नहीं है, तब तक उसे त्याग देना, एक तरफा धार्मिकता नहीं बल्कि अधूरी जानकारी पर आधारित आस्था मानी जाती है।

Related Articles

WhatsApp Group Join Now
Telegram Group Join Now
Instagram Group Join Now
Back to top button